बांग्लादेश में शेख हसीना की सत्तावादी नीतियों ने देश की लोकतांत्रिक छवि को कमजोर किया है, जिससे राजनीतिक सुधारों की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। हालांकि, इन सुधारों को केवल शेख हसीना के अभियोजन तक सीमित करना व्यावहारिक नहीं है। हाल ही में, मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने भारत से शेख हसीना के प्रत्यर्पण की औपचारिक मांग की। शेख हसीना, जो बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री रही हैं, 1971 के बाद भारत में शरण ले रही हैं।
भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि तो है, लेकिन इसके तहत भारत पर शेख हसीना को सौंपने का कोई कानूनी दबाव नहीं है। अब तक भारत सरकार ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, जबकि बांग्लादेश ने अपने अनुरोध को दोहराने की योजना बनाई है। यह मामला केवल कानूनी प्रावधानों का नहीं है; इसमें क्षेत्रीय स्थिरता, कूटनीति और द्विपक्षीय संबंधों के व्यापक आयाम शामिल हैं।
भारत का रुख: शेख हसीना प्रत्यर्पण मामले पर विदेश मंत्रालय की चुप्पी क्यों?
शेख हसीना के प्रत्यर्पण को लेकर बांग्लादेश सरकार की ओर से भारत को भेजे गए राजनयिक नोट पर नई दिल्ली ने फिलहाल कोई प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने मीडिया ब्रीफिंग में पुष्टि की कि बांग्लादेश उच्चायोग से भारत को एक “नोट वर्बेल” मिला है। हालांकि, उन्होंने इस मामले में किसी भी प्रकार की टिप्पणी करने से इंकार करते हुए कहा कि यह मामला अभी विचाराधीन है।
“नोट वर्बेल,” जो एक औपचारिक राजनयिक संचार होता है, अहस्ताक्षरित रहता है और कूटनीति में सामान्य प्रक्रिया के तहत भेजा जाता है। बांग्लादेश द्वारा इसे भेजना इस बात का संकेत है कि वह शेख हसीना के प्रत्यर्पण को लेकर गंभीर है और इसे न्यायिक प्रक्रिया के तहत निपटाना चाहता है।
बांग्लादेश के विदेश मंत्री ने भेजा नोट
बांग्लादेश के विदेश मंत्री तौहीद हुसैन ने हाल ही में खुलासा किया है कि बांग्लादेश सरकार ने शेख हसीना के प्रत्यर्पण को लेकर भारत को राजनयिक नोट भेजा है। ढाका में संवाददाताओं से बात करते हुए उन्होंने कहा, “हमने भारत सरकार को एक मौखिक नोट दिया है, जिसमें हसीना को बांग्लादेश वापस लाने की बात कही गई है ताकि उनके खिलाफ चल रही न्यायिक प्रक्रिया पूरी हो सके।”
यह मामला दोनों देशों के रिश्तों के लिए बेहद संवेदनशील माना जा रहा है। 5 अगस्त को भारी विरोध-प्रदर्शन के बाद 77 वर्षीय शेख हसीना बांग्लादेश छोड़कर नई दिल्ली आ गई थीं। उन पर कई गंभीर आरोप हैं, जिनमें मानवता के खिलाफ अपराध के मामलों का भी जिक्र है।
भारत-बांग्लादेश संबंध: इतिहास से लेकर आज तक
शेख हसीना ने अपने कार्यकाल के दौरान भारत और बांग्लादेश के बीच राजनैतिक और आर्थिक संबंधों को नई ऊंचाई दी थी। उनके नेतृत्व में दोनों देशों के बीच व्यापार और सांस्कृतिक साझेदारी मजबूत हुई। लेकिन उनकी सत्ता से बेदखली के बाद कई ऐसे कदम उठाए गए जो भारत-बांग्लादेश संबंधों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते हैं। इनमें पूर्वोत्तर भारत को इंटरनेट सेवा प्रदान करने के लिए बांग्लादेश को ट्रांजिट पॉइंट बनाने की योजना को रद्द करना शामिल है।
इसके अलावा, बांग्लादेश में शेख मुजीबुर रहमान की विरासत और उनके योगदान को कमजोर करने की कोशिशें की जा रही हैं। ये घटनाएं न केवल बांग्लादेश की आंतरिक राजनीति में अस्थिरता पैदा करती हैं, बल्कि भारत-बांग्लादेश संबंधों पर भी गहरा असर डालती हैं।
कूटनीति और द्विपक्षीय रिश्तों की प्राथमिकता
दिल्ली को अपने पूर्वी पड़ोसी के साथ संबंधों को राजनीति से परे ले जाने पर जोर देना चाहिए। भारत-बांग्लादेश के साझा इतिहास, सांस्कृतिक जुड़ाव और आर्थिक साझेदारी को केंद्र में रखते हुए कूटनीति को आगे बढ़ाना चाहिए। यह जरूरी है कि इन संबंधों को किसी एक व्यक्ति या पार्टी की सीमाओं में नहीं बांधा जाए।
भारत को यह भी स्पष्ट करना चाहिए कि वह शेख हसीना और उनकी पार्टी के साथ ऐतिहासिक संबंधों का सम्मान करता है, लेकिन द्विपक्षीय संबंध केवल व्यक्तिगत आकांक्षाओं या शिकायतों पर आधारित नहीं हो सकते। बांग्लादेश को भी यह समझना चाहिए कि मजबूत संबंध बनाने के लिए राजनीति से ऊपर उठकर काम करना होगा।
शेख हसीना का प्रभाव और भारत-बांग्लादेश संबंध
शेख हसीना ने अपने कार्यकाल के दौरान भारत और बांग्लादेश के बीच राजनैतिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत किया था। उनके नेतृत्व में दोनों देशों के बीच व्यापार, जल साझेदारी, और सांस्कृतिक संबंधों में वृद्धि हुई। हालांकि, उनकी सत्ता से बेदखली के बाद, कई कदम उठाए गए जो भारत-बांग्लादेश संबंधों के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते हैं। इनमें बांग्लादेश को ट्रांजिट पॉइंट बनाने की योजना को रद्द करना और शेख मुजीबुर रहमान की विरासत को कमजोर करने की कोशिशें शामिल हैं।